जानें, कोरोना वायरस की दवा या वैक्सीन न होने के बावजूद कैसे ठीक हो रहें है लोग?

जानें, कोरोना वायरस की दवा या वैक्सीन न होने के बावजूद कैसे ठीक हो रहें है लोग?

सेहतराग टीम

कोरोना वायरस की वजह से दिन प्रतिदिन भारत में मरीज बढ़ते चले जा रहे हैं। यही वजह है कि पूरे देश में लॉकडाउन बढ़ाने की आंशका बढ़ती चली जा रही है। यह हाल भारत का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व का है। सभी देश इस घातक वायरस की मार झेल रहे हैं। यह घातक इसलिए है क्योंकि अभी तक इससे इलाज व बचने के लिए किसी प्रकार की दवा तैयार नहीं हो पाई है। फिलहाल मरीजों के ठीक होने की खबर आती रहती है। भारत में अब तक 4700 से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए हैं उनमें से 353 लोग ठीक भी हो चुके हैं। वहीं दुनियाभर में इससे तकरीबन तीन लाख लोग ठीक हो चुके हैं। वहीं जब अभी तक कोई दवा तैयार नहीं ना तो कोई वैक्सीन तैयार नहीं किया जा सका है तो यह मरीज किससे ठीक हो रहे हैं। यह सवाल सभी के मन में उठ रहा है। यही नहीं वहीं कई लोग यह भी सोच रहे हैं कि जब लोगों का इलाज संभव है तो इतनी कम संख्या में लोग क्यों ठीक हो रहे हैं?  

पढ़ें- कोरोना वायरस की हर जानकारी और मदद के लिए यहां देखें राज्यवार हेल्पलाइन नंबर

दरअसल कोरोना वायरस से 'रिकवरी' के लिए कई मानक तय किए गए हैं। किसी भी व्यक्ति को इस वायरस से मुक्त तभी माना जाता है, जब संक्रमित व्यक्ति में ये मानक पूरे पाए जाते हैं। आइए आपको बताते हैं कि कोरोना वायरस के मरीजों को कैसे ठीक किया जा रहा है।

कोरोना वायरस के इलाज के लिए क्या कर रहे हैं डॉक्टर?

आमतौर पर कोरोना वायरस की चपेट में आने के लगभग 7 दिन बाद मरीज में इसके लक्षण दिखना शुरू होते हैं। मरीज को बुखार आने का मतलब यह है कि उसके शरीर ने कोरोना वायरस से लड़ना शुरू कर दिया है। दरअसल कोरोना वायरस से ठीक होने वाले मरीजों को दवाएं नहीं, बल्कि उनका अपना इम्यून सिस्टम ही ठीक कर रहा है। अस्पताल में सिर्फ मरीज के लक्षणों का इलाज किया जा रहा है। जब अस्पताल में मरीज का इलाज शुरू किया जाता है, तो सबसे पहले लक्षणों को रोकने की कोशिश की जाती है। इसके लिए आइसोलेशन वार्ड में ही मरीज को बुखार, खांसी और दर्द आदि की दवाएं देकर आराम पहुंचाने की कोशिश की जाती है। बहुत सारे मरीज जिनकी इम्यूनिटी अच्छी है, उनका शरीर इस आइसोलेशन पीरियड के दौरान ही वायरस से लड़ने में सफलता प्राप्त करता है और वो ठीक हो जाते हैं।

इम्यून सिस्टम कर रहा है मरीजों का इलाज

हर वायरस की सतह पर या उसके द्वारा छोड़े गए केमिकल में एक खास तत्व होता है, जिसे एंटीजेन कहते हैं। इसी से हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम ये पहचान करता है कि किसे मारना है और किसे छोड़ना है। शरीर में कोरोना वायरस के पहुंचने के बाद ही मरीज का शरीर इंफेक्शन से लड़ने के लिए खास प्रोटीन बनाने लगता है, जिन्हें एंटीबॉडीज कहा जाता है। ये एंटीबॉडी सभी वायरसों को अपनी गिरफ्त में लेते हैं, ताकि वे अपनी संख्या न बढ़ा सकें। इससे धीरे-धीरे व्यक्ति के शरीर में वायरस के इंफेक्शन से दिखने वाले लक्षण कम होने लगते हैं। जब ये एंटीबॉडीज सभी वायरस को पूरी तरह खत्म कर देते हैं और टेस्ट में ये वायरस निगेटिव पाया जाता है, तो मरीज को पूरी तरह रिकवर मान लिया जाता है।

दवाओं के लिए दिए गए हैं निर्देश

कोरोना वायरस चूंकि बिल्कुल नया वायरस है, इसलिए डॉक्टरों को इलाज के दौरान विशेष सावधानी बरतने की हिदायत दी गई है। किस तरह की स्थिति में कौन सी दवाओं का प्रयोग करना है, इसके बारे में स्वास्थ्य विभागों ने पूरे दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यही कारण है कि कोरोना वायरस के लक्षण दिखने पर किसी भी व्यक्ति को अपने से किसी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए, अन्यथा स्थिति गंभीर हो सकती है।

इलाज के बाद भी क्यों रखा जा रहा है आइसोलेट?

कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों को इलाज के बाद भी 7 से 14 दिन तक आइसोलेशन में रहने की सलाह देकर ही डॉक्टर विदा कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज के लक्षण तो ठीक हो जाते हैं, मगर मरीज के शरीर में कुछ संख्या में वायरस मौजूद होते हैं। जो दोबारा अटैक कर सकते हैं। इसलिए व्यक्ति को कुछ दिनों तक आइसोलेशन में रखकर ये देखा जाता है कि वो पूरी तरह से संक्रमण मुक्त हो चुका है।

हर 4 में से 1 व्यक्ति को पड़ रही है वेंटिलेटर की जरूरत

मगर जिन मरीजों में निमोनिया के गंभीर लक्षण दिखते हैं या जिन्हें सांस लेने में परेशानी होती है अथवा जो पहले से किसी गंभीर बीमारी से प्रभावित हैं, उन्हें तुरंत आईसीयू वॉर्ड में भर्ती किया जाता है। अगर किसी मरीज की स्थिति गंभीर है, तो ऑक्सीजन मास्क के द्वारा उसे ऑक्सीजन दी जाती है या स्थिति के अनुसार वेंटिलेटर पर रखा जाता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार हर 4 में से 1 व्यक्ति को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है। वेंटिलेटर पर मरीज के अपने इम्यून सिस्टम के इस वायरस से लड़ने तक उसे कृत्रिम उपकरणों द्वारा जीवन दिया जाता है। जब मरीज का इम्यून सिस्मट धीरे-धीरे वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाता है, तो उसे फिर सामान्य ट्रीटमेंट दिया जाने लगता है।

 

इसे भी पढ़ें-

भारत में कोरोना के कुल मरीज 5194 हुए, कुल 149 मौतें, जानें किस राज्य में कितने मरीज?

 

 

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।